नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सावन का महीना भगवान भोलेनाथ का प्रिय माना जाता है और इस वर्ष यह 11 जुलाई से शुरू होगा। इस माह में कई लोग अपने खान-पान और रहन-सहन में बदलाव करते हैं। पुराने लोग भी सावन के दौरान कुछ चीजों से परहेज करने की सलाह देते हैं, जिसका धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी होता है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों खासकर हिंदी पट्टी में एक प्रसिद्ध कहावत है, “सावन साग न भादो दही।” इसका मतलब है सावन के महीने में हरी सब्जियां और दही खाने से बचना चाहिए।
सावन में दूध से बने उत्पादों का सेवन कम करने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि इस मौसम में जमीन में दबे कीड़े निकलकर घास-फूस और हरी सब्जियों को संक्रमित कर देते हैं। गाय और भैंस इन्हीं सब्जियों को खाती हैं, जिसके कारण उनका दूध भी संक्रमित हो सकता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। साथ ही दही की तासीर ठंडी होती है, जो इस नमी भरे मौसम में सर्दी-जुकाम और पाचन समस्याएं बढ़ा सकती है।
आयुर्वेद के अनुसार, मानसून के दौरान पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए लहसुन और प्याज जैसी गरम तासीर वाली चीजें खाना पेट फूलना, गैस और अपच जैसी दिक्कतें बढ़ा सकती हैं।
चरक संहिता में सावन के महीने में बैंगन खाने से मना किया गया है, क्योंकि यह ‘गंदगी में उगने वाली सब्जी’ मानी जाती है। नमी के कारण इसमें कीड़े लगने का खतरा रहता है, जो संक्रमण का कारण बन सकता है।
सुश्रुत संहिता में भी सावन में हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज करने की सलाह दी गई है, क्योंकि कीड़े और बैक्टीरिया इस मौसम में तेजी से फैलते हैं, जिससे वायरल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
इसलिए सावन के महीने में सही खान-पान का ध्यान रखना और इन परहेजों का पालन करना सेहत के लिए लाभकारी माना जाता है।