मुज़फ्फरनगर। काग़ज़ पर तो जिला अस्पताल गरीबों का सहारा कहा जाता है, मगर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। यहां न डॉक्टरों को मरीजों का दर्द दिखता है, न ही प्रशासन को अस्पताल की बिगड़ी तस्वीर। ताजा मामला जनपद मुज़फ्फरनगर से सोमवार को उस वक्त सुर्खियों में आ गया, जब एक समाजसेवी मनीष कुमार को खुद रिश्वतखोरी और अभद्रता का सामना करना पड़ा। आहत समाजसेवी आंखों में आंसू लिए अस्पताल परिसर में ही धरने पर बैठ गए।
बेबस मां, घायल बेटा और सिस्टम की बेरहमी
मामला बेहद दिल को छू जाने वाला है। दरअसल, एक गरीब महिला अपने बेटे का इलाज कराने के लिए जिला अस्पताल के चक्कर काट रही थी। बेटे का एक्सीडेंट हुआ था और डॉक्टरों ने उसके पैर का ऑपरेशन करने की सलाह दी थी। महिला उम्मीद लेकर अस्पताल पहुंची, लेकिन वहां इलाज की बजाय उसे दो दिन तक सिर्फ़ टरकाया गया। तीसरे दिन डॉक्टरों ने अपनी असली मांग ज़ाहिर की – ऑपरेशन तभी होगा, जब ‘नज़राना’ मिलेगा।
गरीब मां के पास पहले से ही फूटी कौड़ी नहीं थी, ऐसे में वह कहां से लाती? बेबस और हताश मां की आंखों में दर्द साफ़ झलक रहा था, मगर डॉक्टरों के दिल पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
‘नर्क’ में तब्दील हो चुका जिला अस्पताल
जैसे ही यह खबर समाजसेवी मनीष कुमार तक पहुंची, वे फौरन अस्पताल पहुंचे। पर यहां हालात ने उन्हें भी हिलाकर रख दिया। उनका आरोप है कि डॉक्टरों और स्टाफ ने उनसे भी अभद्रता की, और खुलेआम पैसों की मांग कर डाली। मनीष कुमार की आंखें भर आईं और वे खुद भी उस महिला के साथ धरने पर बैठ गए।
रोते हुए उन्होंने कहा – “अगर गरीबों को भी सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिलेगा, तो फिर ये कहां जाएंगे? इस गरीब महिला के पास पैसे नहीं हैं, ऐसे में क्या ये अपने बेटे का इलाज कराए या अपनी इज़्ज़त बचाए? डॉक्टरों ने पैसे मांगकर अपने पेशे की भी तौहीन की है।”
‘दादागिरी’ का ये खेल कब तक?
मनीष कुमार ने प्रशासन से इस पूरे प्रकरण की कड़ी जांच और दोषियों पर सख़्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है – “ये दादागिरी कब तक चलेगी? जिला अस्पताल में गरीबों से ऐसे खुलेआम पैसे मांगना क्या इंसानियत है? गरीब तो आखिर कहां जाए?”
पहले भी सुर्खियों में रहा है अस्पताल
यह पहला मौका नहीं है, जब जिला अस्पताल में भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता के मामले उजागर हुए हों। इससे पहले भी कई बार यहां इलाज के नाम पर गरीबों को लूटा गया, मरीजों से बुरा व्यवहार किया गया और पैसों के अभाव में ज़रूरी इलाज तक रोक दिया गया। मगर अफसोस, हर बार जांच और कार्रवाई के वादे सिर्फ़ फाइलों में दफन होकर रह जाते हैं।
आख़िर कब सुधरेगा सिस्टम?
मुज़फ्फरनगर का जिला अस्पताल आज सवालों के कटघरे में है – क्या ये सचमुच गरीबों का सहारा है या फिर भ्रष्टाचारियों का गढ़? प्रशासन के लिए यह घटना फिर से चेतावनी की तरह है कि अगर अब भी व्यवस्था न सुधरी, तो गरीबों की जान के साथ खिलवाड़ यूं ही चलता रहेगा।