नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक मनोज कुमार का शुक्रवार सुबह 87 वर्ष की आयु में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया। अपने शानदार अभिनय और विशेष रूप से देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के जरिए उन्होंने दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई थी। देश उन्हें प्यार से ‘भारत कुमार’ कहकर बुलाता था।
मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के ऐबटाबाद (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। भारत-पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया और दिल्ली में बस गया। उन्होंने बंटवारे के दर्द को नजदीक से देखा, जिसने उनके भीतर देशभक्ति की भावना को गहराई से बैठा दिया।
दिल्ली में रहते हुए उन्होंने थिएटर से जुड़ाव बढ़ाया और वहीं से उन्हें अभिनय की प्रेरणा मिली। मनोज कुमार दिलीप कुमार और अशोक कुमार की फिल्मों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अभिनय को अपना जीवन लक्ष्य बना लिया। इसी प्रेरणा के चलते उन्होंने अपना असली नाम हरिकिशन से बदलकर मनोज कुमार रख लिया।
मनोज कुमार ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1957 में फिल्म ‘फैशन’ से की थी। हालांकि, उन्हें असली पहचान 1960 में आई फिल्म ‘कांच की गुड़िया’ से मिली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी देशभक्ति पर आधारित फिल्में जैसे ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘क्रांति’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ और ‘संन्यासी’ ने उन्हें एक नए स्तर पर पहुँचा दिया।
मनोज कुमार की फिल्म ‘उपकार’ का निर्माण उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर किया था। शास्त्री जी के ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे से प्रेरित होकर बनी इस फिल्म ने न सिर्फ देशभक्ति को नई परिभाषा दी, बल्कि बॉक्स ऑफिस पर भी धूम मचाई। दुर्भाग्यवश, शास्त्री जी यह फिल्म देख नहीं पाए।
‘उपकार’ को 1968 में चार फिल्मफेयर पुरस्कार मिले – सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशक, कहानी, और संवाद के लिए।
मनोज कुमार को अपने अद्वितीय योगदान के लिए कई सम्मान मिले।
- सात फिल्मफेयर अवॉर्ड
- 1992 में पद्मश्री
- 2016 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
मनोज कुमार की फिल्मों की खास बात यह थी कि वे अकसर अपने किरदार का नाम ‘मनोज’ ही रखते थे। देशभक्ति को फिल्मी पर्दे पर जीवंत करने की उनकी शैली ने उन्हें ‘भारत कुमार’ बना दिया, और यह नाम उनके साथ हमेशा जुड़ा रहा।
मनोज कुमार का जाना सिर्फ एक अभिनेता का जाना नहीं है, बल्कि भारतीय सिनेमा के एक स्वर्णिम अध्याय का समापन है। उन्होंने जिस तरह से सिनेमा को देशभक्ति से जोड़ा, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।
भारतीय सिनेमा और उनके चाहने वालों के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है। भावभीनी श्रद्धांजलि।
मनोज कुमार (1937 – 2025) आपने जो देश को सिनेमा के माध्यम से दिया, वह अमर रहेगा।