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एफआईआर या चार्जशीट से कोई दोषी नहीं माना जा सकता- हाईकोर्ट

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल एफआईआर दर्ज होने या चार्जशीट दाखिल हो जाने से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी सरकारी पद पर नियुक्ति के लिए योग्यता का निर्धारण करना कोर्ट का कार्य नहीं है, बल्कि यह संबंधित अधिकारी का विवेकाधीन विषय है।

मामले का विवरण:
यह आदेश न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर की एकल पीठ ने विवेक यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। याची वर्ष 2015 की पीएसी कांस्टेबल भर्ती में चयनित हुआ था। उस समय उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित नहीं था। हालांकि, चयन के बाद दो परिवारों के बीच विवाद में उसे भी शामिल करते हुए 7 मई 2016 को वाराणसी के चोलापुर थाने में एफआईआर दर्ज की गई। इसके बाद उस पर चार्जशीट भी दाखिल की गई, लेकिन बाद में दोनों पक्षों में समझौता हो गया और अदालत ने चार्जशीट रद्द कर दी।

अयोग्यता और नियुक्ति से इनकार:
इसके बावजूद, डीसीपी वाराणसी ने याची को नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दे दिया और 20 जुलाई 2024 को नियुक्ति से इनकार कर दिया। याची द्वारा इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

कोर्ट की टिप्पणी और निर्देश:
कोर्ट ने डीसीपी का आदेश रद्द करते हुए कहा कि जिलाधिकारी ने मामले में विवेक का प्रयोग नहीं किया और पुलिस रिपोर्ट को ही अंतिम मान लिया। कोर्ट ने कहा कि केवल एफआईआर दर्ज होने के आधार पर चयनित अभ्यर्थी को नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता, खासकर जब मामला बाद में समझौते से निपट चुका हो और चार्जशीट भी निरस्त कर दी गई हो।

हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरी मिलने के बाद कुछ लोग जलन या विद्वेष के कारण झूठे मुकदमे भी करवा सकते हैं, जिसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। आरोप गंभीर नहीं थे और अनैतिक प्रकृति के नहीं थे। जिलाधिकारी को सिर्फ एसपी की रिपोर्ट के आधार पर आदेश पारित नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने विवेक का इस्तेमाल कर गहन जांच करनी चाहिए थी। एफआईआर दर्ज होने के समय और परिस्थितियों का विश्लेषण कर देखना चाहिए था कि मामला वास्तविक है या किसी को नौकरी से वंचित करने की साजिश।

कोर्ट का आदेश:
हाईकोर्ट ने डीसीपी वाराणसी के आदेश को रद्द कर दिया और पुलिस कमिश्नर, डिप्टी पुलिस कमिश्नर वाराणसी एवं अपर सचिव, पुलिस भर्ती बोर्ड को निर्देश दिया है कि वे याची की 2015 की भर्ती में नियुक्ति पर आठ हफ्तों के भीतर पुनर्विचार करें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “उस भर्ती में पद रिक्त नहीं हैं” — यह नियुक्ति से इनकार का कारण नहीं हो सकता।


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