वक्फ पर संग्राम: संसद में पारित, सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक बवाल तय,विपक्ष बोला-अब कोर्ट में होगा फैसला

नई दिल्ली। विवादों और गहन बहसों के बीच शुक्रवार को राज्यसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 को पारित कर दिया। यह विधेयक पहले ही लोकसभा में पारित हो चुका है और अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। गुरुवार दोपहर से शुरू हुई बहस शुक्रवार तड़के तक चली। राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने बताया कि 128 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में और 95 ने इसके विरोध में मतदान किया।

सरकार ने इस विधेयक को “ऐतिहासिक” और मुस्लिम समाज के सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम बताया है। वहीं विपक्ष ने इसे “असंवैधानिक”, “धार्मिक आज़ादी पर हमला” और “जनविरोधी” बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की है।

विधेयक के पारित होने के बाद केंद्रीय मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक कदम है और इससे मुस्लिम समाज की महिलाओं और गरीबों का कल्याण होगा।

भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए कहा, “इस बहस में न राहुल गांधी बोले, न प्रियंका गांधी, और न ही सोनिया गांधी। इसका मतलब साफ है-वह जानते हैं कि यह विधेयक अल्पसंख्यकों के हित में है।”

केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा ने कहा, “इस विधेयक की बहुत आवश्यकता थी ताकि आम और गरीब मुसलमानों को भी वक्फ बोर्ड से जुड़ने और अपने अधिकारों की रक्षा करने का अवसर मिले।”

विधेयक के पारित होते ही विपक्षी दलों ने इसे संविधान विरोधी करार दिया।

राजद सांसद मनोज कुमार झा ने चेतावनी दी, “इस संसद में कृषि कानून भी पारित हुए थे, लेकिन उन्हें वापस लेना पड़ा। अगर इस विधेयक पर लोगों की असंतुष्टि दूर नहीं हुई तो इसका हश्र भी वैसा ही हो सकता है।”

कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, “हमने अपने विचार सरकार के सामने रखे, लेकिन सरकार का रुख शुरू से ही नकारात्मक था। उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी।”

आप सांसद संजय सिंह ने विधेयक को लेकर तीखा हमला किया और कहा, “आज बाबासाहेब के संविधान और लोकतंत्र की हत्या कर दी गई। संख्या बल के बल पर असंवैधानिक विधेयक पारित कर दिया गया है।”

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एससीपी) की सांसद फौजिया खान ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कहते हुए कहा, “इस बिल को किसानों के बिल की तरह ही बुलडोज किया गया है। यह वक्फ बोर्ड जैसी धार्मिक संस्था के अधिकारों पर हमला है और यह कानून सुप्रीम कोर्ट में रद्द होगा।”

अब जबकि यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है, इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। मंजूरी मिलने के बाद यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा।

हालांकि विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा। ऐसे में यह मुद्दा अब संसद से निकलकर न्यायपालिका के दरवाजे पर पहुंचने वाला है।

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